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क्यों प्राइवेट स्कूल के टीचर को भी लाखों में सेलरी मिलने के दिन आ गए हैं
एक जमाने में साधारण से भी कमतर मानी जाने वाली प्राइवेट स्कूल के टीचर की नौकरी अब कइयों के लिए 'ड्रीम जॉब' जैसी हो गई है.
प्रकाशित - 22 अगस्त 2015
एक जमाने में साधारण से भी कमतर मानी जाने वाली प्राइवेट स्कूल के टीचर की नौकरी अब कइयों के लिए 'ड्रीम जॉब' जैसी हो गई है.
आठ साल पहले दिल्ली के एक नामी प्राइमरी स्कूल में बतौर प्रोग्राम को-आर्डिनेडर नौकरी शुरू करने वाले वेद प्रकाश का जब इसी साल जुलाई में प्रमोशन हुआ और वे स्कूल के प्रिंसिपल बन गए तो उनके अलावा स्कूल का लगभग सारा स्टाफ हैरान था. वजह थी इतनी कम उम्र में इतनी लंबी छलांग. लेकिन वेद प्रकाश अपने प्रमोशन को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थे, लिहाजा उन्हें कोई हैरानी नहीं हुई. मगर तब वे एकबारगी जरूर हैरान रह गए जब उन्हें बतौर प्रिंसिपल उनकी तनख्वाह बताई गई. स्कूल मैनेजमेंट ने उनकी सेलरी में 100 फीसदी बढ़ोतरी कर दी थी. वेद प्रकाश का सालाना पैकेज 15 लाख से 30 लाख रु पर पहुंच गया था.
वेद प्रकाश ऐसे अकेले शिक्षक नहीं हैं जिनके साथ ऐसा अचंभित करने वाला वाकया हुआ है. देश के कई नामी प्राइवेट स्कूलों में अब शिक्षकों को इसी तरह के 'सुखद आश्चर्य' की प्राप्ति होने लगी है. दरअसल पिछले तीन- चार सालों के दौरान इन स्कूलों में पढ़ा रहे शिक्षकों के वेतन में जबरदस्त बढ़ोतरी देखी जा रही है. शिक्षकों की सालाना तनख्वाह की बात करें तो कई स्कूलों में यह आठ से बढ़कर 20 लाख तक पहुंच गई है. जबकि प्रधानाचार्य की जिम्मेदारी संभाल रहे शिक्षकों को 50 लाख रुपये सालाना तक वेतन मिलने लगा है. आवास सहित बाकी सुविधाएं और भत्ते जोड़ दें तो कुछ मामलों में तो यह आंकड़ा एक करोड़ को भी छूने लगा है.
बीते कुछ समय के दौरान भारत में इंटरनेशल स्कूलों के चलन ने तेज रफ्तार पकड़ ली है. आज देश में इंटरनेशनल स्कूलों की संख्या 600 से भी ज्यादा हो चुकी है.
जिन स्कूलों में शिक्षकों को अच्छा खासा वेतन दिया जा रहा है उनमें से अधिकांश दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, गुड़गांव, और पुणे जैसे शहरों में हैं. मोटी सेलरी के अलावा बढ़िया शिक्षकों को हर हाल में अपने स्कूल में बनाए रखने के लिए स्कूल प्रबंधन और भी कई उपाय कर रहे हैं. इनमें मुफ्त आवास, खान-पान और यहां तक कि सैर सपाटे तक की सुविधा भी शामिल है. एक रिपोर्ट के मुताबिक ये सुविधाएं देने वाले स्कूलों में मर्सिडीज बेंज इंटरनेशनल स्कूल (पुणे), स्टोन हिल इंटरनेशनल स्कूल (बेंगलुरु), जीडी गोयनका वर्ल्ड स्कूल, (गुड़गांव), धीरूभाई अंबानी इंटरनेशनल स्कूल (मुंबई) और एजुब्रिज इंटरनेशनल स्कूल (मुंबई) जैसे चोटी के नाम शामिल हैं.
कारण
जानकारों की मानें तो पिछले कुछ सालों से भारत की शहरी आबादी में पैसे वाले लोगों की तादाद लगातार बढ़ी है. यह नवधनाढ़्य तबका बच्चों की शिक्षा पर कितना भी पैसा खर्च करने के लिए तैयार हैं. इसके चलते स्कूलों पर भी दबाव है कि वे शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए अपने यहां अच्छे शिक्षकों की भर्ती करें. पहली वजह तो यही है जिसके चलते शिक्षकों को मोटी तनख्वाह मिल रही है.
दूसरी और उससे बड़ी वजह है मांग से कम आपूर्ति. दरअसल भारत में इंटरनेशल स्कूलों का चलन रफ्तार पकड़ रहा है. आज देश में इंटरनेशनल स्कूलों की संख्या 600 से भी ज्यादा हो चुकी है. ये सारे स्कूल तीन विदेशी बोर्डों के साथ जुड़े हुए हैं-जेनेवा स्थित द इंटरनेशनल बकालॉरियाट, केंब्रिज इंटरनेशनल एक्जामिनेशंस और ब्रिटेन में ही स्थित एडएक्सेल. एक तरफ कई नए इंटरनेशनल स्कूल खुलने की तैयारी में हैं तो दूसरी तरफ पुराने और बड़े स्कूल भी अपने पाठ्यक्रम को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के हिसाब से ढाल रहे हैं.
पाठ्यक्रम विश्वस्तरीय होगा तो शिक्षक भी विश्वस्तरीय ही चाहिए. यही वजह है कि बीते एक साल में ही अच्छे और अनुभवी शिक्षकों की मांग में 30 फीसदी से भी ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है. हर इंटरनेशनल स्कूल अच्छे टीचर चाहता है. जानकारों के मुताबिक यही वजह है कि इस क्षेत्र में वेतन में सालाना 20-40 फीसदी की बढ़ोतरी आम है. यदि शिक्षक एक स्कूल छोड़कर दूसरा ज्वाइन करता है तो यह आंकड़ा 50-100 फीसदी भी पहुंच सकता है. आपूर्ति में कमी के चलते अमेरिका और यूरोप से विदेशी शिक्षकों को भी मोटी तनख्वाह पर बुलाया जा रहा है.
पिछले कुछ सालों से बड़े शहरों में पैसे वाले लोगों की तादाद लगातार बढ़ी है. ये लोग अपने बच्चों की शिक्षा पर कितना भी पैसा खर्च करने के लिए तैयार हैं.
वेतन में बढ़ोतरी की यह हवा इंटरनेशनल से एक दर्जा नीचे वाले नामी पब्लिक स्कूलों में भी देखी जा रही है. जानकारों के मुताबिक बीते दो-तीन सालों के दौरान ही इनमें प्रधानाचार्य के पद का वेतन 8-15 लाख के दायरे से बढ़कर 12-15 लाख तक पहुंच गया है. यहां भी इसके कमोबेश वही कारण हैं जिनका पहले जिक्र हुआ है.
बहुत से लोगों की मानें तो सरकारी स्कूलों की दयनीय हालत ने भी प्राइवेट स्कूलों के शिक्षकों की बढ़ती सेलरी में बड़ी भूमिका निभाई है. देश का मध्यवर्ग अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए पूरी तरह से प्राइवेट स्कूलों पर निर्भर हो चुका है, भले ही इसके लिए कितनी भी फीस भरनी पड़े. पिछले पांच- सात सालों के दौरान जहां एक तरफ देश भर के सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या लगातार घटती जा रही है, वहीं प्राइवेट स्कूलों की संख्या में जबरदस्त इजाफा देखा जा रहा है. नये -नये खुल रहे इन स्कूलों के चलते भी शिक्षकों के लिए बेहतर वेतन के अवसर बढते जा रहे हैं. एक साक्षात्कार में एक नामी स्कूल के प्रबंधन मंडल के सदस्य कहते हैं, 'नये स्कूल अच्छे शिक्षकों को अपने यहां भर्ती करने के लिए अच्छा खासा आफर दे रहे हैं, जिसकी वजह से हमें भी इन शिक्षकों को टिकाए रखने के लिए इनकी तनख्वाह और सुख सुविधाओं पर पहले से ज्यादा खर्च करना पड़ रहा है.'
बहरहाल कारण बहुत सारे हैं, और बात सिर्फ एक कि एक जमाने में साधारण से भी कमतर मानी जाने वाली प्राइवेट शिक्षक की नौकरी अब कई लोगों के लिए 'ड्रीम जॉब' जैसी होने लगी है.
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